Friday, March 9, 2012

दुःख: पेर दानिएल अमदेउस अत्तेर्बोम

पेर दानिएल अमदेउस अत्तेर्बोम की एक कविता
(अनुवाद: अनुपमा पाठक)

निश्चित रूप से इस दुनिया में कोई नहीं है,
जो जानता है, क्यूँ दुःख की शिकायत करते हैं;
वह इंसान, जो स्वयं उसे धारण किये हुए है:
उसे वह मजबूर करती है रात और दिन.

मैं काली रात में एक पक्षी की तरह हूँ,
जो शाखा पर अकेला बैठा है,
आसमान के नीचे बहुत ऊँचाई पर, गाँव की धरती से बहुत दूर,
जब बर्फ़ गिरती है हिरन की सी तेजी लिए.

मैंने सुना कैसे अंगूर की बेल कट गयी थी,
तब पत्ते और जलडमरूमध्य गरजे थे:
अब आ रहा है मेरे हृदय में पूर्ण शिथिलता के साथ पतझड़,
और अब मुझे चुप रहने दो, कुञ्ज की तरह.

एक तारा जिसे मैंने जाना था, वह मेरे लिए अनुग्रहकारी था;
वह मेरे मन से विलग नहीं हो सकता!
व्यर्थ में स्मृति से किसी आवाज़ की उम्मीद लगाये बैठा हूँ,
लेकिन यह नेह की ही स्मृति है.

Sorg

Det är visst ingen i världen till,
Som vet, varför sorgen klagar;
Förutan den man, som själv henne bär:
Hon tvingar honom nätter och dagar.

Jag är som en fågel i kolsvart kväll,
Som sitter ensam på grenen,
Så högt under sky, så långt ifrå by,
När snö faller redan på renen.

Jag hörde hur kornet av lian skars,
Då brusade löven och sunden;
Nu kommer med slagan mitt hjärtas höst,
Och nu må jag tiga, som lunden.

En stjärna jag kände, hon var mig huld;
Ej slockna hon kan i mitt sinne!
Ty fåfängt är vänta på minnetröst,
Men nog är kärleken minne.

-Per Daniel Amadeus Atterbom

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