Wednesday, July 4, 2012

निराशा: एरिक ब्लोमबेरी

एरिक ब्लोमबेरी की एक कविता
(अनुवाद: अनुपमा पाठक)


धरती, माँ,
अंधकारमय और अचल,
फैलाओ अपनी बाहें
उनके लिए जो हैं निराश.

छुपा लो मेरे हृदय को,
छुपा लो मेरी आखें
सूर्य के झूठ से.

वह नीला अंतरिक्ष
करता है हमारे भाग्य का उपहास.

तुम हो लेकिन सत्य
 
जिसके स्वामित्व में होंगे हम सब.

Förtvivlan

Jord, moder,
mörk och stilla,
öppna din famn
för den som förtvivlar.

Göm mitt hjärta,
göm mina ögon
för solens lögner.

Den blåa rymden
gycklar vårt öde.

Du blott är sann
som skall äga oss alla.

-Erik Blomberg

2 comments:

  1. छुपा लो मेरी आखें
    सूर्य के झूठ से.

    वह नीला अंतरिक्ष
    करता है हमारे भाग्य का उपहास..kyaa tippani ho in behtreen panktiyon par ..waah waah

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  2. .
    धरती, सूर्य, अंतरिक्ष !
    इनके सापेक्ष निरुपाय-सा अस्तित्व।
    भ्रम एवं भय।
    आलोड़ित हो जाने की नैसर्गिक अपेक्षा।
    जीव को विदेह कर.. स्वीकार कर ..
    पूर्णत्व दो माँ ..
    ...

    'गहन' को शाब्दिक किया जाना भला लगा।
    शुभ-शुभ

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